रायपुर. छत्तीसगढ़ के प्रथम पत्रकार मूर्धन्य साहित्यकार तथा प्रखर देशभक्त पं.माधवराव सप्रेजी की 138 वीं जयंती के अवसर पर महाराष्ट्र मंडल तथा पं. माधवराव सप्रे साहित्य शोध केंद्र, रायपुर द्वारा संयुक्त रूप से शोध संगोष्ठी एवं जयंती समारोह का आयोजन महाराष्ट्र मंडल, चौबे कालोनी के संत ज्ञानेश्वर सभागृह में किया गया । दो सत्रों में आयोजित इस समारोह में 25 से अधिक शोधपत्र प्रस्तुत किये गये । विशिष्ट वक्ताओं ने सप्रे जी को पत्रकारिता और साहित्य का अमूल्य धरोहर बताते हुए सप्रे साहित्य के पुनर्प्रकाशन को ही पुण्य स्मरण बताया ।
मुख्य वक्ता श्री कनक तिवारी ने इस अवसर पर कहा कि सप्रेजी ने छत्तीसगढ़ मित्र को पत्रकारिता का इतिहास बना दिया है । सौ साल पहले वे सांस्कृतिक छत्तीसगढ़ की कल्पना करते थे और बाद में यही छत्तीसगढ़ भौगोलिक रूप से बना । उनका साहित्य आम लोगों के लिए भी उपयोगी था । श्री तिवारी ने कहा कि भौतिक रूप से स्मरण करना उचित नही है, वैचारिक रूप से कुछ करने की आवश्यकता है । महापुरुषों के लिए समाज को सोचना और करना होगा न कि उनके परिवारों को । आज समाज हमारे महापुरुषों को भी जाति एवं वर्ग में बाँट रही है जो चिंतनीय है जो चिंतनीय है । श्री रमेश नैयर ने कहा कि सप्रेजी मूलतः पत्रकार थे और उनकी पत्रकारिता समाज सापेक्ष थी। श्री संजय द्विवेदी ने कहा कि सप्रे जी सभी विधाओं में लिखा और उनकी हिंदी भारतेंदु की परंपरा के समकक्ष थी । भारतेंदु और महावीर प्रसाद द्विवेदी ने जो कार्य हिंदी के लिए किया है लगभग वैसा ही कार्य सप्रे जी का है ।
श्री गिरीश पंकज ने कहा कि जो नैतिक ईमानदारी सप्रेजी में थी आज की पत्रकारिता में दिखाई नहीं देती । आज साहित्य भी राह से भटक गया है । पत्रकारिता मिशन न होकर कमीशन हो गई है । श्री बसंत तिवारी ने कहा कि मैंने सप्रे को विशुद्ध रूप से पत्रकार के नजरिये से देखा है । कितने कष्टों को झेलकर उन्होंने छत्तीसगढ़ मित्र का प्रकाशन किया रहा होगा । तब पत्रकारिता विज्ञापन के मायाजाल से मुक्त थी । वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर अग्निहोत्री ने भी पत्रकारिता और साहित्य के संगम की वकालत की । श्री सच्चिदानंद उपासने ने कहा कि पत्रकारिता को समाज के लिए उत्तरदायी रहना चाहिए । समारोह के अध्यक्ष कुलपति श्री सच्चिदानंद जोशी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में संगोष्ठी को सार्थक बताते हुए कहा कि सप्रेजी साहित्य एवं पत्रकारिता के नींव के पत्थर हैं और वे अपनी कृतियों के माध्यम से युगों तक जीवित रहेंगे । प्रारंभ में डॉ. अशोक सप्रे ने केंद्र की गतिविधियों की जानकारी दी । इस अवसर पर सुधीर शर्मा द्वारा संपादित पत्रिका साहि्त्य वैभव के सप्रे अंक का तथा रजा हैदरी द्वारा संपादित पत्रिका श्लोक के फिराक गोरखपुरी अंक का लोकार्पण किया गया । सप्रे केंद्र एवं महाराष्ट्र मंडल द्वारा स्थापित प्रथम पं. माधवराव सप्रे साहित्य एवं पत्रकारिता सम्मान डॉ. देवी प्रसाद वर्मा बच्चू जाँजगिरी को दिया गया ।
प्रातः प्रथम सत्र में छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानो आए प्राध्यापकों एवं शोधछात्रों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये । इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. विमल कुमार पाठक ने की तथा डॉ. रामकुमार बेहार, ध्रुवनारायण अग्रवाल, एवं रामकुमार शर्मा विशिष्ट वक्ता थे । डॉ. शैल शर्मा एवं रेणु सक्सेना ने संचालन किया । पद्मश्री महादेव पांडेय, रवि श्रीवास्तव, अशोक सिंघई, हरिशंकर शुक्ल, जयप्रकाश मानस, जे.आर.सोनी, राजेन्द्र सोनी, एच.एस.ठाकुर, छंदा बेनर्जी, राकेश तिवारी, अखिलेश तिवारी, प्रीतिबाला तिवारी, प्रीतिबाला चंद्राकर, प्रो. चौधरी, अनंतधर शर्मा, मंजू ठाकुर सहित बड़ी संख्या में विद्वान उपस्थित थे । महाराष्ट्र मंडल के सचिव आशीष पंडित ने आभार एवं मुख्य सत्र का संचालन सप्रे शोध केंद्र के सचिव डॉ. सुधीर शर्मा ने किया ।
बुधवार, 18 जून 2008
सांस्कृतिक छत्तीसगढ़ के निर्माता थे सप्रेजी
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6 टिप्पणियां:
बहोत खुब ब्लोग बनाया है! मजा आ गया.
जानकारी के लिए धन्यवाद!
अच्छी जानकारी दी आपने
लेकिन नई प्रस्तुति में
इतना विलंब क्यों ?
आपका ब्लाग बहुत उपयोगी
व ज्ञान वर्धक है.
कृपया सतत लिखा करें.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
जानकारी के लिए धन्यवाद!
बहुत सही और संतुलित रपट है । यह हमारा सौभाग्य है कि हम सप्रे जी के वंशज हैं ।-शरद कोकास दुर्ग छ.ग.
बहोत खुब ब्लोग बनाया है
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