जयप्रकाश मानस के आलेख पर टीप
नामवरी आलोचना का मोहताज नहीं नहीं हिंदी ब्लॉग
नामवर जी आदरणीय हैं । हिदी आलोचना उनकी एहसानमंद है । परंतु वे अब दादाजी हो गई हैं । दादाजी घर में ही ज्यादा रहते हैं । बच्चों को अतीत की गौरव-गाथा सुनाते हैं । नई पीढ़ी को भटकी हुई पीढ़ी कहते हैं।
नामवर आलोचना के स्वयं के बनाये चक्रव्यूह से आसानी से नहीं निकल सकते । वे तो इस सदी में उतना भी नहीं सोच रहे हैं, जितना 100 साल पहले पं.माधवराव सप्रे सोचते थे । ब्लॉग आज की दुनिया का डायरी लेखन है, निजी संस्मरणों या विचारों की डायरी मात्र नहीं । दुनिया में परस्पर संवाद, संपादक की बेईमानी, प्रकाशकों की तानाशाही और पाठकों की लापरवाही से अलग । इस दुनिया में नामवर की क्या आवश्यकता है ? नामवरजी प्रणम्य हैं । उन्हें प्रणाम करते रहें । अपना ब्लॉग लिखते रहें । नामवरी मायानगरी और सेंसरबोर्ड के प्रपंचों से दूर । दादाजी आपकी ऊँगली के बजाय बच्चों ने की-बोर्ड पकड़ लिया है । निकल पड़े हैं दुनिया की सैर पर.....
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1 टिप्पणी:
बिलकुल ठीक कहा सुधीर भाई यहाँ हमे किंग मेकर नहीं चाहिये ।
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